पं पारसनाथ पाठक ‘प्रसून‘ का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के ग्राम गोपालपुर में 17 जुलाई, 1932 (गुरू पूर्णिमा) को हुआ था। आपकी प्रारम्भ्कि शिक्षा स्थानीय स्तर पर हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. करने के बाद आपने गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी.एड., काशी विद्यापीठ, वाराणसी से इतिहास एवं हिन्दी विषय में एम.ए. तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, इलाहाबाद से विशारद व साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त की।
अध्ययन के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय, डेलीगेसी के साहित्यिक सचिव रहे। साठ व सत्तर के दशक में ‘प्रसून‘ जी की रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई जिसमे जौनपुर से प्रकाशित ‘समय‘ साप्ताहिक पत्र मुख्य है। प्रसून जी को विभिन्न साहित्यिक विभूतियों से सम्पर्क व सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रसून जी सर्वोदय विद्यापीठ इण्टर कालेज, मीरगंज, जौनपुर (उ.प्र.) में हिन्दी के प्रवक्ता रहे और विभिन्न सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से जुडे़ रहे। वे नागरिक डिग्री काॅलेज, जौनपुर की प्रबंध समिति में उपाध्यक्ष भी रहे।
उनके द्वारा रचित एवं उपलब्ध कविताओं का संग्रह ‘स्वर बेला‘ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। इस काव्य संग्रह की अधिकांश रचनायें उनके बाल्यकाल की कृतियां है किन्तु उनकी रचनायें जीवन के हर पहलुओं को छूती हैं। इस संग्रह की कविताओं में विषय की विविधता के साथ शैली का भी वैविध्य है। उनकी पुण्य स्मृति में स्थापित पारस-बेला न्यास द्वारा हिन्दी कविता की त्रैमासिक पत्रिका ‘पारस परस‘ का वर्ष 2011 से नियमित प्रकाशन किया जा रहा है। इसके साथ ही प्रत्येक वर्ष हिन्दी के एक प्रतिष्ठित कवि को ‘पारस शिखर सम्मान‘ प्रदान किया जाता है। प्रसून जी की स्मृति में ‘प्रसून साहित्य उत्सव‘ का भी आयोजन किया जा रहा है।
पं0 पारसनाथ पाठक प्रसून की जीवन संगिनी जो हर सुख-दुख में उनके साथ खड़ी रहीं। बाल्यावस्था में ही माता-पिता का स्थूल साथ छूट जाने के बाद अलग-थलग पड़ गए ‘प्रसून‘ जी को इस नारी शक्ति ने सम्बल प्रदान किया। जिससे उनका व्यक्तित्व और भी निखर सका। वे जीवन पर्यन्त मानवीय मूल्यों के लिए मन-वचन-कर्म से जुटी रहीं और असंख्य अभावग्रस्त लोगों का सहारा बनी रहीं।
न्यास द्वारा हिंदी काव्य की त्रैमासिक पत्रिका पारस पखान का प्रकाशन जनवरी - मार्च वर्ष 2009 के प्रवेशांक से प्रारंभ किया गया। जो जनवरी से मार्च 2011 तक चलता रहा। इसके पश्चात् अप्रैल -जून 2011 से पारस-परस नाम से यह नियमित प्रकाशित हो रही है।
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